सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस रखा बरक़रार
अलीगढ़/तहलका न्यूज़18
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी 1875 में सर सैयद अहमद खान ने कायम की थी. इसका आगाज़ ‘मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज’ के नाम से हुआ था. यह इंस्टीट्यूशन मुसलमानों के तालीमी तरक्की के लिए बनाया गया था. 1920 में इसे यूनिवर्सिटी का स्टेटस दिया गया था।
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ समेत 4 जजों ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस फिलहाल बरक़रार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी माइनॉरिटी स्टेटस के लिए 3 जजों की बेंच बनाई जाएगी। नई बेंच तय करेगी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस बना रहेगा या नहीं। 7 जजों की बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का फैसला अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस दिए जाने के हक़ में था। वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा इससे मुखालिफ थे।
सुप्रीम कोर्ट ने माइनॉरिटी स्टेटस मामले में पहले भी फैसला सुनाया था। 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 5 जजों की संविधान पीठ ने माना था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन नहीं है। पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अधिनियम 1920 का हवाला दिया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना इसी अधिनियम के तहत की गई थी और माना था कि एएमयू न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और न ही मुस्लिम समुदाय द्वारा प्रशासित था। 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन करके कहा गया कि विश्वविद्यालय ‘भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित’ है। इसके बाद 2005 में अल्पसंख्यक दर्जे का दावा करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने मुस्लिम छात्रों के लिए स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में 50% सीटें रिज़र्व कर दीं।
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1967 के अजीज बाशा फैसले को रद्द कर दिया। 1965 में ही एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर विवाद शुरू होने के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर स्वायत्तता खत्म कर दी थी। इसके बाद 1967 में अजीज बाशा ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। तब सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी 1875 में सर सैयद अहमद खान ने क़ायम की थी. इसे ”मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज” के नाम से शुरू किया गया था. यह इदारा मुसलमानों के तालीमी तरक्की के लिए बनाई गई थी. 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. इस दौरान इसका नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय रखा गया. इसके एक्ट में 1951 और 1965 में संशोधन किए गए. इसके बाद यहां विवाद शुरू हो गया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय माना. कोर्ट ने कहा कि इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि इसकी स्थापना केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है. इसके बाद विरोध शुरू हो गया. 1981 में एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए संशोधन किया गया. इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।